Friday, 24 December 2021

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संघ गीत

जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान।

प्राची की चंचल किरणों पर आया स्वर्ण विहान।।


स्वर्ण प्रभात खिला घर-घर में जागे सोये वीर।

युध्दस्थल में सज्जित होकर बढ़े आज रणधीर।

आज पुनः स्वीकार किया है असुरों का आह्वान॥ 

                                   जाग उठा है ..........


सहकर अत्याचार युगों से स्वाभिमान फिर जागा

दूर हुआ अज्ञान पार्थ का धनुष-बाण फिर जागा

पाञ्चजन्य ने आज सुनाया संस्कृति को जयगान॥

                                        जाग उठा है........


जाग उठी है वानर-सेना जाग उठा वनवासी।

चला उदधि को आज लाँघने ईश्वर का विश्वासी।

दानव की लंका में फिर से होता है अभियान॥

                                       जाग उठा है ......


खुला शम्भु का नेत्र आज फिर वह प्रलयंकर जागा।

तांडव की वह लपटें जागी वह शिवशंकर जागा।

तालताल पर होता जाता पापों का अवसान॥

                                   जाग उठा है ........


ऊपर हिम से ढकी खड़ी हैं वे पर्वत मालाएँ।

सुलग रही हैं भीतर-भीतर प्रलयंकर ज्वालाएँ।

उन लपटों में दीख रहा है भारत का उत्थान।।

                                   जाग उठा है ........

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