संघ गीत
शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है
दिव्य ऐसे प्रेम मे ईश्वर स्वयम् साकार है ॥धृ॥
प्रेम जो केवल समर्पण भाव को ही जानत है
और उसमे ही स्वयम् की धन्यता बस मानता है
राष्ट्रभर मे स्नेह भरना, साधना क सार है ॥१॥
भरत जननी ने किया वात्सल्य से पालन हमारा
है कृपा इसको मिला है प्राण तन जीवन हमारा
भक्ति से हम हो समर्पित बस यही अधिकार है ॥२॥
जाती भाषा प्रान्त आदी वर्ग भेदों को मिटाने
दूर अर्थाभाव करने तम अविद्या को हटाने
नित्य ज्योतिर्मय हमारा हृदय स्नेहागार है ॥३॥
कोटि आँखो से निरन्तर आज आँसू बह रहे है
आज अनगिन बन्धु अनगिन यातनाए सह रहे है
दुख हरे सुख दे सभी को एक यह आचार है ॥४॥
***
Suddha sAtvika prema apane kArya kA AdhAra hai
divya aise prema me ISvara svayam sAkAra hai ||dhRu||
prema jo kevala samarpaNa BAva ko hI jAnata hai
aura usame hI svayam kI dhanyatA basa mAnatA hai
rAShTrabhara me sneha BaranA, sAdhanaa ka sAra hai ||1||
Barata jananI ne kiyA vAtsalya se pAlana hamArA
hai kRupA isako milA hai prANa tana jIvana hamArA
Bakti se hama ho samarpita basa yahI adhikAra hai ||2||
jAtI BAShA prAnta AdI varga BedoM ko miTAne
dUra arthABAva karane tama avidyA ko haTAne
nitya jyotirmaya hamArA hRudaya snehAgAra hai ||3||
koTi A~MKo se nirantara Aja A~MsU baha rahe hai
Aja anagina bandhu anagina yAtanA^^e saha rahe hai
duKa hare suKa de saBI ko eka yaha AcAra hai ||4||
***
ಶುದ್ಧ ಸಾತ್ವಿಕ ಪ್ರೇಮ ಅಪನೇ ಕಾರ್ಯ ಕಾ ಆಧಾರ ಹೈ
ದಿವ್ಯ ಐಸೇ ಪ್ರೇಮ ಮೇ ಈಶ್ವರ ಸ್ವಯಮ್ ಸಾಕಾರ ಹೈ ||ಧೃ||
ಪ್ರೇಮ ಜೋ ಕೇವಲ ಸಮರ್ಪಣ ಭಾವ ಕೋ ಹೀ ಜಾನತ ಹೈ
ಔರ ಉಸಮೇ ಹೀ ಸ್ವಯಮ್ ಕೀ ಧನ್ಯತಾ ಬಸ ಮಾನತಾ ಹೈ
ರಾಷ್ಟ್ರಭರ ಮೇ ಸ್ನೇಹ ಭರನಾ, ಸಾಧನಾ ಕ ಸಾರ ಹೈ ||೧||
ಭರತ ಜನನೀ ನೇ ಕಿಯಾ ವಾತ್ಸಲ್ಯ ಸೇ ಪಾಲನ ಹಮಾರಾ
ಹೈ ಕೃಪಾ ಇಸಕೋ ಮಿಲಾ ಹೈ ಪ್ರಾಣ ತನ ಜೀವನ ಹಮಾರಾ
ಭಕ್ತಿ ಸೇ ಹಮ ಹೋ ಸಮರ್ಪಿತ ಬಸ ಯಹೀ ಅಧಿಕಾರ ಹೈ ||೨||
ಜಾತೀ ಭಾಷಾ ಪ್ರಾಂತ ಆದೀ ವರ್ಗ ಭೇದೋಂ ಕೋ ಮಿಟಾನೇ
ದೂರ ಅರ್ಥಾಭಾವ ಕರನೇ ತಮ ಅವಿದ್ಯಾ ಕೋ ಹಟಾನೇ
ನಿತ್ಯ ಜ್ಯೋತಿರ್ಮಯ ಹಮಾರಾ ಹೃದಯ ಸ್ನೇಹಾಗಾರ ಹೈ ||೩||
ಕೋಟಿ ಆಂಖೋ ಸೇ ನಿರಂತರ ಆಜ ಆಂಸೂ ಬಹ ರಹೇ ಹೈ
ಆಜ ಅನಗಿನ ಬಂಧು ಅನಗಿನ ಯಾತನಾಏ ಸಹ ರಹೇ ಹೈ
ದುಖ ಹರೇ ಸುಖ ದೇ ಸಭೀ ಕೋ ಏಕ ಯಹ ಆಚಾರ ಹೈ ||೪||
***
शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ॥
प्रेम जो केवल समर्पण भाव को ही जानता है
और उसमे ही स्वयम् की धन्यता बस मानता है
दिव्य ऐसे प्रेम मे ईश्वर स्वयम् साकार है ॥
भरत जननी ने किया वात्सल्य से पालन हमारा
है कृपा इसकी मिला है प्राण तन जीवन हमारा
भक्ति से हम हो समर्पित बस यही अधिकार है।।
जाति भाषा प्रान्त आदि वर्ग भेदों को मिटाने
दूर अर्थाभाव करने तम अविद्या को हटाने
नित्य ज्योतिर्मय हमारा हृदय स्नेहागार है।।
कोटि आँखो से निरन्तर आज आँसू बह रहे है
आज अगणित बंधु अनगिन यातनाए सह रहे है
दुख हरे सुख दे सभी को एक यह आधार है ।
शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार है ॥
***