संघ गीत
यह कल कल छल छल बहती क्या कहती गंगा धारा
युग युग से बहता आता यह पुण्य प्रवाह हमारा ॥धृ॥
हम ईसके लघुतम जलकण, बनते मिटते है क्षण क्षण
अपना अस्तित्व मिटाकर, तन मन धन करते अर्पण
बढते जाने का शुभ प्रण, प्राणों से हमको प्यारा ॥१॥
ईस धारा में घुल मिलकर वीरों की राख बही है
ईस धारामें कितने ही ऋषियों ने शरण गही है
ईस धाराकी गोदि में, खेला ईतिहास हमारा ॥२॥
यह अविरल तप का फल है, यह राष्ट्रप्रवाह प्रबल है
शुभ संस्कृति का परिचायक, भारत मां का आंचल है
यह शाश्वत है चिरजीवन, मर्यादा धर्म सहारा ॥३॥
क्या ईसको रोख सकेंगे, मिटनेवाले मिट जायें
कंकड पत्थर की हस्ती, कया बाथा बनकर आये
ढह जायेंगे गिरि पर्वत, कांपे भूमंडल सारा ॥४॥
***
yaha kala kala Cala Cala bahatI kyA kahatI gaMgA dhArA
yuga yuga se bahatA AtA yaha puNya pravAha hamArA ||dhRu||
hama Isake laGutama jalakaNa, banate miTate hai kShaNa kShaNa
apanA astitva miTAkara, tana mana dhana karate arpaNa
baDhate jAne kA SuBa praNa, prANoM se hamako pyArA ||1||
Isa dhArA meM Gula milakara vIroM kI rAKa bahI hai
Isa dhArAmeM kitane hI RuShiyoM ne SaraNa gahI hai
Isa dhArAkI godi meM, KelA ItihAsa hamArA ||2||
yaha avirala tapa kA Pala hai, yaha rAShTrapravAha prabala hai
SuBa saMskRuti kA paricAyaka, BArata mAM kA AMcala hai
yaha SASvata hai cirajIvana, maryAdA dharma sahArA ||3||
kyA Isako roKa sakeMge, miTanevAle miTa jAyeM
kaMkaDa patthara kI hastI, kayA bAthA banakara Aye
Dhaha jAyeMge giri parvata, kAMpe BUmaMDala sArA ||4||
***
ಯಹ ಕಲ ಕಲ ಛಲ ಛಲ ಬಹತೀ ಕ್ಯಾ ಕಹತೀ ಗಂಗಾ ಧಾರಾ
ಯುಗ ಯುಗ ಸೇ ಬಹತಾ ಆತಾ ಯಹ ಪುಣ್ಯ ಪ್ರವಾಹ ಹಮಾರಾ ||ಧೃ||
ಹಮ ಈಸಕೇ ಲಘುತಮ ಜಲಕಣ, ಬನತೇ ಮಿಟತೇ ಹೈ ಕ್ಷಣ ಕ್ಷಣ
ಅಪನಾ ಅಸ್ತಿತ್ವ ಮಿಟಾಕರ, ತನ ಮನ ಧನ ಕರತೇ ಅರ್ಪಣ
ಬಢತೇ ಜಾನೇ ಕಾ ಶುಭ ಪ್ರಣ, ಪ್ರಾಣೋಂ ಸೇ ಹಮಕೋ ಪ್ಯಾರಾ ||೧||
ಈಸ ಧಾರಾ ಮೇ ಘುಲ ಮಿಲಕರ ವೀರೋಂ ಕೀ ರಾಖ ಬಹೀ ಹೈ
ಈಸ ಧಾರಾ ಮೇ ಕಿತನೇ ಹೀ ಋಷಿಯೋಂ ನೇ ಶರಣ ಗಹೀ ಹೈ
ಈಸ ಧಾರಾಕೀ ಗೋದಿ ಮೇ, ಖೇಲಾ ಈತಿಹಾಸ ಹಮಾರಾ ||೨||
ಯಹ ಅವಿರಲ ತಪ ಕಾ ಫಲ ಹೈ, ಯಹ ರಾಷ್ಟ್ರಪ್ರವಾಹ ಪ್ರಬಲ ಹೈ
ಶುಭ ಸಂಸ್ಕೃತಿ ಕಾ ಪರಿಚಾಯಕ, ಭಾರತ ಮಾ ಕಾ ಆಂಚಲ ಹೈ
ಯಹ ಶಾಶ್ವತ ಹೈ ಚಿರಜೀವನ, ಮರ್ಯಾದಾ ಧರ್ಮ ಸಹಾರಾ ||೩||
ಕ್ಯಾ ಈಸಕೋ ರೋಖ ಸಕೇಂಗೇ, ಮಿಟನೇವಾಲೇ ಮಿಟ ಜಾಯೇಂ
ಕಂಕಡ ಪತ್ಥರ ಕೀ ಹಸ್ತೀ, ಕಯಾ ಬಾಥಾ ಬನಕರ ಆಯೇ
ಢಹ ಜಾಯೇಂಗೇ ಗಿರಿ ಪರ್ವತ, ಕಾಂಪೇ ಭೂಮಂಡಲ ಸಾರಾ ||೪||
***
यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगा धारा ?
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा ॥
हम इसके लघुतम जल कण, बनते मिटते हैं क्षण-क्षण
अपना अस्तित्व मिटाकर, तन मन धन करते अर्पण
बढते जाने का शुभ प्रण, प्राणों से हमको प्यारा ॥१॥
इस धारा में घुल मिलकर, वीरों की राख बही है
इस धारा में कितने ही, ऋषियों ने शरण ग्रही है
इस धारा की गोदी में, खेला इतिहास हमारा ॥२॥
यह अविरल तप का फल है, यह राष्ट्रप्रवाह प्रबल है
शुभ संस्कृति का परिचायक, भारत माँ का आँचल है
हिंदु की चिरजीवन, मर्यादा धर्म सहारा ॥३
क्या इसको रोक सकेंगे, मिटने वाले मिट जाएँ ।
कंकड पत्थर की हस्ती, क्या बाधा बनकर आए
ढह जायेंगे गिरि पर्वत, काँपे भूमंडल सारा ॥४॥
***