संघ गीत
शांति कीजिये प्रभु त्रिभुवन में-2
जल में थल में और गगन में,
अंतरिक्ष में अग्नि पवन में,
औषधि वनस्पति वन उपवन में,
सकल विश्व में जड़ चेतन में,
शांति कीजिये प्रभु त्रिभुवन में।
शांति राष्ट्र निर्माण सृजन में,
नगर ग्राम में और भवन में,
जीव मात्र के तन में मन में,
और जगत के हो कण कण में।
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