संघ गीत
राष्ट्र के आधार केतु अर्चना लाये पुजारी।
दिव्य-रवि की रश्मियाँ निर्माण तेरा कर रही हैं
जो कुहू की कालिमा को जन्म से ही हर रही हैं
उस उषा की अरुणिमा भी गा रही गाथा तुम्हारी
राष्ट्र के आधार केतु॥१॥
युग-युगों से कर रहे आराधना निज शीश देकर
होड़ लगती जिस गुरु का मांगलिक आशीष लेकर
उस कृपा का पात्र बनने शरण में आया भिखारी
राष्ट्र के आधार केतु॥२॥
यज्ञ की उठती शिखा सम असुर -नाशी वर्ण तेरा
शान्ति में ही क्रान्ति का अव्दैत एकीकरण तेरा
विश्व के कल्याण हित निर्माण की शिक्षा तुम्हारी
राष्ट्र के आधार केतु॥३॥
पूर्वजों की साधना बलिदान के तुम मानबिन्दु
हर लहर से जागरण का पा रहे आह्वान हिन्दु
चेतना नव-जागृति दो शेस आकांक्षा हमारी
राष्ट्र के आधार केतु॥४॥
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