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जय भारती जय भारती
स्वर्ग ने थी जिस तपोवन की उतारी आरती ॥प॥
ज्ञान-रवी-किरणें जहाँ फूटीं प्रथम विस्तृत भुवन में
साम्य सेवा भावना सरसिज खिला प्रत्येक मन में
मृत्यु को भी जो अमर गीता गिरा ललकारती ॥१॥
ध्यान में तन्मय जहाँ योगस्थ शिव सा है हिमालय
कर रही झंकार पारावार वीणा दिव्य अव्यय
कोटि जन्मों के अधों को जाह्नवी है तारती ॥२॥
कंस सूदन का सुदर्शन राम के शर भीम भैरव
त्याग राणा का शिवा की नीति बंदा का समर रव
ज्वाल जौहर की शिखा जिसकी विजय उच्चारती ॥३॥
असुर-वंश-विनासिनी तू खंग खप्पर धारणी माँ
ताण्डवी उस रुद्र् की तू अट्टहास विहारिणी माँ
शत्रु-दल की मृत्यु बेला आज तुझको पुकारती ॥४॥
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jaya BAratI jaya BAratI
svarga ne thI jisa tapovana kI utArI AratI ||pa||
j~jAna-ravI-kiraNeM jahA~M PUTIM prathama vistRuta Buvana meM
sAmya sevA BAvanA sarasija KilA pratyeka mana meM
mRutyu ko BI jo amara gItA girA lalakAratI ||1||
dhyAna meM tanmaya jahA~M yogastha Siva sA hai himAlaya
kara rahI JaMkAra pArAvAra vINA divya avyaya
koTi janmoM ke adhoM ko jAhnavI hai tAratI ||2||
kaMsa sUdana kA sudarSana rAma ke Sara BIma Bairava
tyAga rANA kA SivA kI nIti baMdA kA samara rava
jvAla jauhara kI SiKA jisakI vijaya uccAratI ||3||
asura-vaMSa-vinAsinI tU KaMga Kappara dhAraNI mA~M
tANDavI usa rudr kI tU aTTahAsa vihAriNI mA~M
Satru-dala kI mRutyu belA Aja tuJako pukAratI ||4||
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