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दर्शनीया पूजनीया मातृ शत शत वंदना
कोटी कँठोंसे सुनो समवेत जननी प्रार्थना ॥धृ॥
मानसर योगी शिला से ब्रह्मनद से सिंधु तक
कोटी क्षेत्रोंसे जुटाये पत्र फल और पुष्प जल
भक्ति नवधा सूत्र में बांधी सुमन आराधना ॥१॥
धवल हिमगिरी के शिखर से नीलगिरी की श्यामता
सिंधु के सिकता कणों से दीप्त मणीपुर की प्रभा
सप्त रंगों से सँवारी इंद्रधनु की कल्पना ॥२॥
धूल का आंधड उडाता ग्रीष्म क्रूर वेग से
कडकडाते पश्चिमी झोंके तनोंको भेदते
सावनी रिम झिम बसंती राग की संयोजना ॥३॥
विविधता में एकता का पुष्ट मा आधार तुम
भक्ति विव्हल वीर जन की इष्ट मा साकार तुम
चतुर वर्गों के फलों की मूल की मा साधना ॥४॥
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darSanIyA pUjanIyA mAtRu Sata Sata vaMdanA
koTI ka~MThoMse suno samaveta jananI prArthanA ||dhRu||
mAnasara yogI SilA se brahmanada se siMdhu taka
koTI kShetroMse juTAye patra Pala aura puShpa jala
Bakti navadhA sUtra meM bAMdhI sumana ArAdhanA ||1||
dhavala himagirI ke SiKara se nIlagirI kI SyAmatA
siMdhu ke sikatA kaNoM se dIpta maNIpura kI praBA
sapta raMgoM se sa~MvArI iMdradhanu kI kalpanA ||2||
dhUla kA AMdhaDa uDAtA grIShma krUra vega se
kaDakaDAte paScimI JoMke tanoMko Bedate
sAvanI rima Jima basaMtI rAga kI saMyojanA ||3||
vividhatA meM ekatA kA puShTa mA AdhAra tuma
Bakti vivhala vIra jana kI iShTa mA sAkAra tuma
catura vargoM ke PaloM kI mUla kI mA sAdhanA ||4||
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