संघ गीत
संगठन सूत्र के शिल्पी हम, शिल्पी हम कठिन कला के हैं
हृदयों के तार मिलाते हैं जो है अटके भूले भटके
कर थामे में कदम बढ़ाते हैं -2
संगठन सूत्र के शिल्पी हम
यह नाव भंवर से जो निकली, टूटी फूटी है खाली है
जर्जर है छेदों वाली है
श्रम साधन शक्ति जुटा कर हम-2
स्वर्णिम तट खेते जाते हैं, लहरों पर रास रचाते हैं
जो पूर्ण अखंडित आज़ादी, सपनों में सदा संजोई थी
बलिदान रक्त से सींची थी
उसको साकार बनाने का-2 अविचल विश्वास जगाते हैं
सौगंध अटल हम खाते हैं
जिस हिंदू ने भारत मां को, सिंहासन पर बिठलाया था
जग का सिरमौर बनाया था
अपमानित भ्रमित रहा सदियों-2 सोया सिंहत्व जगाते हैं
गर्जन से गगन गूँजाते हैं।
ले संघ प्रेरणा लोकशक्ति, फैलेंगे दसों दिशाओं में
लहरेगा रक्त शिराओं में
हमें संघ शक्ति के साधक बन-2 दैवीय सामर्थ्य जगाते हैं
जन-जन को अभय बनाते हैं
***