संघ गीत
रक्त शिराओं में राणा का,
रह रह आज हिलोरें लेता।
मातृभूमि का कण-कण तृण तृण,
हमको आज निमंत्रण देता।।
वीर प्रसूता भारत माँ की हम सब हिंदू हैं संतानें।
हर विपदा जो माँ पर आती सहते हैं हम सीना ताने।
युग युग की निद्रा को तज कर-2 फिर है अपना गौरव चेता।
मातृभूमि का कण कण तृण तृण......
यह वह भूमि जहाँ पर नित नित लगता बलिदानों का मेला।
इस धरती के पुत्रों ने ही हँस हँस महामृत्यु को झेला।
हमको डिगा न पाया कोई-2 अगणित आए विश्व विजेता।
मातृभूमि का कण-कण तृण तृण...
आज पुनः आक्रांत हुई है मातृभूमि हम सबकी प्यारी।
उठो चुनौती को स्वीकारें युवकों आज हमारी बारी।
सीमाओं पर अरिदल देखो-2 हमको पुनः चुनौती देता।
मातृभूमि का कण कण तृण तृण.....
कहीं न हमसे फिर छिन जाए देवभूमि कश्मीर हमारी।
समय आ गया खींचो वीरों कोषों से अब खड़ग दुधारी।
मिटा विश्व से इन दुष्टों को-2 बने जगत के अतुल विजेता।
मातृभूमि का कण-कण तृण तृण..
रक्त शिराओं में राणा का,
रह रह आज हिलोरें लेता।
मातृभूमि का कण-कण तृण तृण,
हमको आज निमंत्रण देता।।
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