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हिंदु तन मन हिंदु जीवन रग रग हिंदु मॆर परिचय ॥धृ॥
मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूँ जिसमे नचता भीषण संहार
रणचण्डी की अतृप्त प्यास मैं दुर्गा का उन्मत्त हास
मैं यम की प्रलयन्कर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अन्तरतम की ज्वाला से जगती में आग लगा दूं मैं
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय ॥१॥
मैं आज पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया भू पर
पय पीकर सब मरते आए मैं अमर हुवा लो विष पीकर
अधरोंकी प्यास बुझाई है मैं ने पीकर वह आग प्रखर
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर में ही छूकर
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारम्भ किया मेरा पूजन
मैं नर नारायण नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय ॥२॥
मैं अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर दान
मैं ने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैं ने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ में गेहर गेहेर सागर के जल में चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ मैं ॥३॥
मैं तेजःपुन्ज तम लीन जगत में फैलाया मैं ने प्रकाश
जगती का रच करके विनाश कब चाहा है निज का विकास
शरणागत की रक्षा की है मैं ने अपना जीवन देकर
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर
यदि आज देहलि के खण्डहर सदियोंकी निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उनके स्वर से हिन्दु की जय तो क्या विस्मय ॥४॥
दुनियाँ के वीराने पथ पर जब जब नर ने खाई ठोकर
दो आँसू शेष बचा पाया जब जब मानव सब कुछ खोकर
मैं आया तभि द्रवित होकर मैं आया ज्ञान दीप लेकर
भूला भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जगकर
पथ के आवर्तोंसे थककर जो बैठ गया आधे पथ पर
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढनिश्चय ॥५॥
मैं ने छाती का लहु पिला पाले विदेश के सुजित लाल
मुझको मानव में भेद नही मेरा अन्तःस्थल वर विशाल
जग से ठुकराए लोगोंको लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ हूँ लुटा चुका पर अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयोंका वह राज मुकुट
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय ॥६॥
मैं वीरपुत्र मेरी जननी के जगती में जौहर अपार
अकबर के पुत्रोंसे पूछो क्या याद उन्हे मीना बझार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्रों माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह बुझनेवाली आग नहीं रग रग में उसे समाए हूँ
यदि कभी अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो क्या विस्मय ॥७॥
होकर स्वतन्त्र मैं ने कब चाहा है कर लूँ सब को गुलाम
मैं ने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम
गोपाल राम के नामोंपर कब मैं ने अत्याचार किया
कब दुनियाँ को हिन्दु करने घर घर में नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी मस्जिद तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय ॥८॥
मैं एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मैं व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैं ने पाया तन मन इससे मैं ने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
मैं तो समाज की थाति हूँ मैं तो समाज का हूँ सेवक
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय ॥९॥
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hiMdu tana mana hiMdu jIvana raga raga hiMdu mEra paricaya ||dhRu||
maiM SaMkara kA vaha krodhAnala kara sakatA jagatI kShAra kShAra
DamarU kI vaha pralayadhvani hU~M jisame nacatA BIShaNa saMhAra
raNacaNDI kI atRupta pyAsa maiM durgA kA unmatta hAsa
maiM yama kI pralayankara pukAra jalate maraGaTa kA dhu~MvAdhAra
Pira antaratama kI jvAlA se jagatI meM Aga lagA dUM maiM
yadi dhadhaka uThe jala thala aMbara jaDa cetana to kaisA vismaya ||1||
maiM Aja puruSha nirBayatA kA varadAna liye AyA BU para
paya pIkara saba marate Ae maiM amara huvA lo viSha pIkara
adharoMkI pyAsa buJAI hai maiM ne pIkara vaha Aga praKara
ho jAtI duniyA BasmasAta jisako pala Bara meM hI CUkara
Baya se vyAkula Pira duniyA ne prAramBa kiyA merA pUjana
maiM nara nArAyaNa nIlakaNTha bana gayA na isame kuCa saMSaya ||2||
maiM aKila viSva kA guru mahAna detA vidyA kA amara dAna
maiM ne diKalAyA muktimArga maiM ne siKalAyA brahma j~jAna
mere vedoM kA j~jAna amara mere vedoM kI jyoti praKara
mAnava ke mana kA aMdhakAra kyA kaBI sAmane sakaThakA sehara
merA svarNaBa meM gehara gehera sAgara ke jala meM cehera cehera
isa kone se usa kone taka kara sakatA jagatI sauraBa maiM ||3||
maiM tejaHpunja tama lIna jagata meM PailAyA maiM ne prakASa
jagatI kA raca karake vinASa kaba cAhA hai nija kA vikAsa
SaraNAgata kI rakShA kI hai maiM ne apanA jIvana dekara
viSvAsa nahI yadi AtA to sAkShI hai itihAsa amara
yadi Aja dehali ke KaNDahara sadiyoMkI nidrA se jagakara
guMjAra uThe unake svara se hindu kI jaya to kyA vismaya ||4||
duniyA~M ke vIrAne patha para jaba jaba nara ne KAI Thokara
do A~MsU SeSha bacA pAyA jaba jaba mAnava saba kuCa Kokara
maiM AyA taBi dravita hokara maiM AyA j~jAna dIpa lekara
BUlA BaTakA mAnava patha para cala nikalA sote se jagakara
patha ke AvartoMse thakakara jo baiTha gayA Adhe patha para
usa nara ko rAha diKAnA hI merA sadaiva kA dRuDhaniScaya ||5||
maiM ne CAtI kA lahu pilA pAle videSa ke sujita lAla
muJako mAnava meM Beda nahI merA antaHsthala vara viSAla
jaga se ThukarAe logoMko lo mere Gara kA KulA dvAra
apanA saba kuCa hU~M luTA cukA para akShaya hai dhanAgAra
merA hIrA pAkara jyotita parakIyoMkA vaha rAja mukuTa
yadi ina caraNoM para Juka jAe kala vaha kirITa to kyA vismaya ||6||
maiM vIraputra merI jananI ke jagatI meM jauhara apAra
akabara ke putroMse pUCo kyA yAda unhe mInA baJAra
kyA yAda unhe cittoDa durga me jalanevAlI Aga praKara
jaba hAya sahasroM mAtAe tila tila kara jala kara ho gaI amara
vaha buJanevAlI Aga nahIM raga raga meM use samAe hU~M
yadi kaBI acAnaka PUTa paDe viplava lekara to kyA vismaya ||7||
hokara svatantra maiM ne kaba cAhA hai kara lU~M saba ko gulAma
maiM ne to sadA siKAyA hai karanA apane mana ko gulAma
gopAla rAma ke nAmoMpara kaba maiM ne atyAcAra kiyA
kaba duniyA~M ko hindu karane Gara Gara meM narasaMhAra kiyA
koI batalAe kAbula meM jAkara kitanI masjida toDI
BUBAga nahI Sata Sata mAnava ke hRudaya jItane kA niScaya ||8||
maiM eka bindu paripUrNa sindhu hai yaha merA hindu samAja
merA isakA saMbandha amara maiM vyakti aura yaha hai samAja
isase maiM ne pAyA tana mana isase maiM ne pAyA jIvana
merA to basa kartavya yahI kara dU saba kuCa isake arpaNa
maiM to samAja kI thAti hU~M maiM to samAja kA hU~M sevaka
maiM to samaShTi ke lie vyaShTi kA kara sakatA balidAna aBaya ||9||
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