संघ गीत
चले चले हम निशिदिन अविरत
चले चले हम सतत चले
कर्म करे हम निरलस पल पल
दिनकर सम हम सदा जले ॥प॥
सोते नर के भाग्य सुप्त है, जागे नर का भाग्य जागता
उठने पर वह झठ से उठता, पग बढते ही वह भी बढता
आप्त वचन यह ऋषि मुनियो का, नर है नर का भाग्य विधाता
पुरखो की यह सीख समझकर, कर्मलीन हो सदा चले ॥१॥
आर्यधर्म को पुन: प्राणमय, करने निकले घर से शंकर
केरल से केदारनाथ तक, घूमे गुमराहों पर जयकर
विचरे अचल वनांचल मरुथल, ऐक्य तत्व का शंख बजाकर
उस दिग्विजयी की गति लेकर, सतत चले कर्मण्य बने ॥२॥
गाडी मेरा घर है कहकर, जिस ने की संचार तपस्या
मै नही तू ही तू यह जपकर, जिस ने की माँ की परिचर्या
जय ही जय की धुन से जिस ने, पूरी की जीवन की यात्रा
उस माधव के अनुचर हम नित, काम करे अविराम चले ॥३॥
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cale cale hama niSidina avirata
cale cale hama satata cale
karma kare hama niralasa pala pala
dinakara sama hama sadA jale ||pa||
sote nara ke BAgya supta hai, jAge nara kA BAgya jAgatA
uThane para vaha JaTha se uThatA, paga baDhate hI vaha BI baDhatA
Apta vacana yaha RuShi muniyo kA, nara hai nara kA BAgya vidhAtA
puraKo kI yaha sIKa samaJakara, karmalIna ho sadA cale ||1||
Aryadharma ko puna: prANamaya, karane nikale Gara se SaMkara
kerala se kedAranAtha taka, GUme gumarAhoM para jayakara
vicare acala vanAMcala maruthala, aikya tatva kA SaMKa bajAkara
usa digvijayI kI gati lekara, satata cale karmaNya bane ||2||
gADI merA Gara hai kahakara, jisa ne kI saMcAra tapasyA
mai nahI tU hI tU yaha japakara, jisa ne kI mA~M kI paricaryA
jaya hI jaya kI dhuna se jisa ne, pUrI kI jIvana kI yAtrA
usa mAdhava ke anucara hama nita, kAma kare avirAma cale ||3||
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ಚಲೇ ಚಲೇ ಹಮ ನಿಶಿದಿನ ಅವಿರತ
ಚಲೇ ಚಲೇ ಹಮ ಸತತ ಚಲೇ
ಕರ್ಮ ಕರೇ ಹಮ ನಿರಲಸ ಪಲ ಪಲ
ದಿನಕರ ಸಮ ಹಮ ಸದಾ ಜಲೇ ||ಪ||
ಸೋತೇ ನರ ಕೇ ಭಾಗ್ಯ ಸುಪ್ತ ಹೈ, ಜಾಗೇ ನರ ಕಾ ಭಾಗ್ಯ ಜಾಗತಾ
ಉಠನೇ ಪರ ವಹ ಝಠ ಸೇ ಉಠತಾ, ಪಗ ಬಢತೇ ಹೀ ವಹ ಭೀ ಬಢತಾ
ಆಪ್ತ ವಚನ ಯಹ ಋಷಿ ಮುನಿಯೋ ಕಾ, ನರ ಹೈ ನರ ಕಾ ಭಾಗ್ಯ ವಿಧಾತಾ
ಪುರಖೋ ಕೀ ಯಹ ಸೀಖ ಸಮಝಕರ, ಕರ್ಮಲೀನ ಹೋ ಸದಾ ಚಲೇ ||೧||
ಆರ್ಯಧರ್ಮ ಕೋ ಪುನ: ಪ್ರಾಣಮಯ, ಕರನೇ ನಿಕಲೇ ಘರ ಸೇ ಶಂಕರ
ಕೇರಲ ಸೇ ಕೇದಾರನಾಥ ತಕ, ಘೂಮೇ ಗುಮರಾಹೋಂ ಪರ ಜಯಕರ
ವಿಚರೇ ಅಚಲ ವನಾಂಚಲ ಮರುಥಲ, ಐಕ್ಯ ತತ್ವ ಕಾ ಶಂಖ ಬಜಾಕರ
ಉಸ ದಿಗ್ವಿಜಯೀ ಕೀ ಗತಿ ಲೇಕರ, ಸತತ ಚಲೇ ಕರ್ಮಣ್ಯ ಬನೇ ||೨||
ಗಾಡೀ ಮೇರಾ ಘರ ಹೈ ಕಹಕರ, ಜಿಸ ನೇ ಕೀ ಸಂಚಾರ ತಪಸ್ಯಾ
ಮೈ ನಹೀ ತೂ ಹೀ ತೂ ಯಹ ಜಪಕರ, ಜಿಸ ನೇ ಕೀ ಮಾ ಕೀ ಪರಿಚರ್ಯಾ
ಜಯ ಹೀ ಜಯ ಕೀ ಧುನ ಸೇ ಜಿಸ ನೇ, ಪೂರೀ ಕೀ ಜೀವನ ಕೀ ಯಾತ್ರಾ
ಉಸ ಮಾಧವ ಕೇ ಅನುಚರ ಹಮ ನಿತ, ಕಾಮ ಕರೇ ಅವಿರಾಮ ಚಲೇ ||೩||
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चलें चलें
चलें चलें हम निशिदिन अविरत,
चलें चलें हम सतत चलें।
कर्म करें हम निरलस पल पल,
दिनकर सम हम सदा जलें ॥
सोते नर के भाग्य सुप्त हैं,
जागे नर का भाग्य जागता
उठने पर वह झट से उठता,
पग बढ़ते ही वह भी बढ़ता
आप्त वचन यह ऋषि मुनियों का,
नर है नर का भाग्य विधाता
पुरखों की यह सीख समझकर,
कर्मलीन हो सदा चलें ॥
आर्यधर्म को पुन: प्राणमय,
करने निकले घर से शंकर
केरल से केदारनाथ तक,
घूमे गुमराहों पर जयकर
विचरे अचल वनांचल मरुथल,
ऐक्य तत्व का शंख बजाकर
उस दिग्विजयी की गति लेकर,
सतत चलें कर्मण्य बनें।।
गाड़ी मेरा घर है कहकर,
जिस ने की संचार तपस्या
मैं नहीं तू ही तू यह जपकर,
जिस ने की माँ की परिचर्या
जय ही जय की धुन से जिस ने,
पूरी की जीवन की यात्रा
उस माधव के अनुचर हम नित,
काम करें अविराम चलें।।
चलें चलें
चलें चलें हम निशिदिन अविरत,
चलें चलें हम सतत चलें।
कर्म करें हम निरलस पल पल,
दिनकर सम हम सदा जलें ॥
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