संघ गीत
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
संगठन का भाव भरते जा रहे ॥
यह सनातन राष्ट्र मंदिर है यहां
वेद की पावन ऋचाएं गूँजती
प्रकृति का वरदान पाकर शक्तियां
देव निर्मित इस धरा को पूजती
हम स्वयं देवत्व गढ़ते जा रहे ॥1॥
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
राष्ट्र की जो चेतना सोई पड़ी
हम उसे फिर से जगाने आ गए
परम पौरुष की पताका हाथ ले
क्रांति के नवगीत गाने आ गए
विघ्न बाधा शैल चढ़ते जा रहे ॥2॥
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
हम युवाओं का करें आह्वान फिर
शक्ति का नव ज्वार पैदा हो सके
राष्ट्र रक्षा का महा अभियान ले
संगठन भी तीव्रगामी हो सके
लक्ष्य का संधान करते जा रहे ॥3॥
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
संगठन का भाव भरते जा रहे ॥
स्वर :- स्वामीनन्द
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हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
संगठन का भाव भरते जा रहे ॥
यह सनातन राष्ट्र मंदिर है यहां
वेद की पावन ऋचाएं गूँजती
प्रकृति का वरदान पाकर शक्तियां
देव निर्मित इस धरा को पूजती
हम स्वयं देवत्व गढ़ते जा रहे ॥1॥
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
राष्ट्र की जो चेतना सोई पड़ी
हम उसे फिर से जगाने आ गए
परम पौरुष की पताका हाथ ले
क्रांति के नवगीत गाने आ गए
विघ्न बाधा शैल चढ़ते जा रहे ॥2॥
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
हम युवाओं का करें आह्वान फिर
शक्ति का नव ज्वार पैदा हो सके
राष्ट्र रक्षा का महा अभियान ले
संगठन भी तीव्रगामी हो सके
लक्ष्य का संधान करते जा रहे ॥3॥
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
संगठन का भाव भरते जा रहे ॥
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