संघ गीत
हम सभी का जन्म तव प्रतिबिम्ब सा बन जाय।
और अधूरी साधना चिर पूर्ण बस हो जाय।।
बाल्य जीवन से लगाकर अन्त तक की दिव्य झांकी
मूक आजीवन तपस्या जा सके किस भाँति आँकी
क्षीर सिंधु अथाह विधि से भी न नापा जाय
चाह है उस सिंधु की हम बूँद ही बन जायँ ॥१॥
एक भी क्षण जन्म में नही आपने विश्राम पाया
रक्त के प्रत्येक कण को हाय पानी सा सुखाया।
आत्म-आहूति दे बताया राष्ट्र-मुक्ति उपाय
एक चिनगारी हमें उस यज्ञ की छू जाय ॥२॥
थे अकेले आप लेकिन बीज का था बीज पाया
बो दिया निज को अमर वट संघ भारत में उगाया।
राष्ट्र ही क्या अखिल जग का आसरा हो जाय
और उसकी हम टहनियाँ-पत्तियाँ बन जायँ॥३॥
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