सत्य समर्पण त्याग से SATYA SAMARPANA TYAGA SE
सत्य समर्पण त्याग से भक्ति प्रेम अनुराग से भरतभूमि को स्वर्ग बनाएं अपने यत्न प्रयास से
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"सत्य, समर्पण, त्याग से" (Satya, Samarpan, Tyaag Se) यह पंक्ति अक्सर कविताओं, देश-भक्ति गीतों या प्रेरक भाषणों में आती है, खासकर डॉ. हरिओम पंवार की रचनाओं में, जिसमें भारत माँ की सेवा और देश के उत्थान का भाव होता है; यह पूरी पंक्ति "मैं ताजों के लिए समर्पण, वंदन गीत नहीं गाता, दरबारों के" की कविता का हिस्सा है, जो सच्चाई, देशप्रेम और त्याग की भावना को दर्शाती है.
यह कविता 'मैं देश नहीं बिकने दूंगा' जैसे जोश भरे नारों के साथ देश के नेताओं और व्यवस्था को चुनौती देती है कि वे देश के लिए ईमानदारी से काम करें, गरीबों का ख्याल रखें और देश को मजबूत बनाएं, जिसमें 'सत्य, समर्पण, त्याग' का भाव ही सर्वोपरि है.
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