संघ गीत
नदिया न पिये कभी अपना जल,
वृक्ष न खाए कभी अपना फल ।
अपने तन को मन को धन को
देश को दे दे दान रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान
चाहे मिले सोना चाँदी
चाहे मिले रोटी बासी।
महल मिले बहु सुखकारी,
चाहे मिले कुटिया खाली
प्रेम और संतोष भाव से,
करता जो स्वीकार रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान
चाहे करे निन्दा कोई
चाहे कोई गुण गान करे,
फूलों से सतकार करे
काँटों की चिन्ता न धरे
मान और अपमान ही दोनो
जिस के लिये समान रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान
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