संघ गीत
एक बार करवट तो बदलें ,
सारा जग जयकार करेगा ॥
जड़ चट्टानें करवट लेतीं, नग उपत्यका हिल जाती है
लहरों की ठण्डी करवट से, प्रलय प्रभीशा घहराती है।
हम चेतन अंगडाई ले लें, सब जग हाहाकार करेगा ॥
एक बार करवट तो बदलें।
सुधा कुण्ड दानवी नाभि के, सोखें शोषक बाण चला कर।
चामुंडा का भरें कलेवर, रक्त बीज का रक्त पिला कर।
पौण्ड्र शंख दें फूंक भीम का, कौरव दल चीत्कार करेगा ॥
एक बार करवट ......
हमे सरल प्रह्लाद समझ कर सतत तर्जना जो देते हैं।
नित्य हमारी मृदु ऋजुता पर हँस हँस कर जो रस लेते हैं।
खम्बे से फट पड़े नृसिंह से महादैत्य चीत्कार करेगा ॥
एक बार करवट....
हम हिंसा के नहीं पुजारी, जन जन में यह प्रण भी भर दें।
भय बिन होय न प्रीति मंत्र को किंतु विश्व में मुखरित कर दें।
विष्णुगुप्त की शिखा खोल दें कौन छली प्रतिकार करेगा ॥
एक बार करवट तो बदलें।।
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