संघ गीत
देश प्रेम का मूल्य प्राण है,
देखें कौन चुकाता है।
देखें कौन सुमन-शय्या तज,
कंटक पथ अपनाता है।
सकल मोह ममता को तज कर,माता जिसको प्यारी हो।
शत्रु का हिय छेदन हेतु ,जिसकी तेज कटारी हो ।
मातृभूमि के लिए राज्य तज,जो बन चूका भिखारी हो,
अपने तन -मन धन जीवन का, स्वयं पूर्ण अधिकारी हो।
आज उसी के लिए संघ यह ,भुज अपने फैलाता है।
देखे कौन सुमन-शय्या तज,कंटक पथ अपनाता है।
कष्ट कंटको में पड़ करके,जीवन पट झीने होंगे।
काल कूट के विषमय प्याले,प्रेम सहित पीने होंगे।
अत्याचारों की आंधी ने,कोटि सुमन छीने होंगे।
एक तरफ संगीने होंगी,एक ओर सीने होंगे।
वही वीर अब बढ़ें जिसे,हँस -हँस कर मरना आता है।
देखें कौन सुमन-शय्या तज,कंटक पथ अपनाता है।
***
No comments:
Post a Comment