संघ गीत
बन्धू रुक मत जाना मग में।
लालच लखकर मत फँस जाना।
अपना मार्ग बदल मत जाना।
एक माल में मिलते जाना-2
दुःख है अलग -अलग में।
बन्धू रुक मत जाना मग में।
जाल बिछाते पन्थ घनेरे।
जिन पर स्वारथ होते पूरे।
ध्येय छोड़ कर किन्तु अधूरे-2
हँसी करा मत जग में।
बन्धू रुक मत जाना मग में।
कुछ वर्षो तक कष्ट सहन कर।
मिलजुल कर सामर्थ्य -सृजन कर।
भारत को करना शिव सुन्दर -2
भर जीवन रग रग में।
बन्धू रुक मत जाना मग में।
ऐसा पथ फिर ऐसे नेता।
ऐसे साथी कहीं मिले क्या?
महा भाग रे बढ़ चल लेकर।
अंगद सा बल पग में।
बन्धू रुक मत जाना मग में।
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