Friday, 24 December 2021

संस्कृति सबकी एक others SANSKRUTI SABKI EK rss


 संघ गीत



   RSS song.

संस्कृती सबकी एक चिरंतन खून रगों मे हिन्दु हैं

विराट सागर समाज अपना हम सब इसके बिन्दु हैं ॥धृ॥


राम कृष्ण गौतम की धरती महावीर का ज्ञान यहाँ

वाणी खण्डन मण्डन करती शंकर चारों धाम यहाँ

जितने दर्शन राहें उतनी चिन्तन का चैतन्य भरा

पन्थ खालसा गुरू पुत्रों की बलिदानी यह पुण्य धरा

अक्षय वट अगणित शखाएं जड में जीवन हिन्दु हैं ॥१॥


कोटी हृदय हैं भाव एक है इसी भूमि पर जन्म लिए

मातृभूमि यह कर्मभूमि यह पुण्यभूमि हित मरे जिये

हारे जीते संघर्षों में साथ लढे बलिदान हुए

कालचक्र की मजबूरी में रिश्ते नाते बिखर गये

एक बडा परिवार हमारा पुरखे सब के हिन्दु हैं ॥२॥


सबकी रक्षा धर्म करेगा उसकी रक्षा आज करें

वर्ण भेद मत भेद मिटा कर नव रचना निर्माण करें

धर्म हमारा जग में अभिनव अक्षय है अविनाशी हैं

इसी कडी से जुडे हुए हम युग से भारतवासी हैं

थाह अथाह जहाँ की महिमा गेहरा जैसा सिन्धु हैं ॥३॥


हरिजन गिरिजनवासी बन के नगर ग्राम सब साथ चलें

ऊंच नीच का भाव हटा कर समता के सद्भाव बढें

ऊपर दिखते भेद भले हो जैसे वनमें में फूल खिले

रंग बिरंगी मुसकानों से जीवन रस पर एक मिले

संजीवनी रस अमृत पीकर मृत्युंजय हम हिन्दु हैं ॥४॥

***

saMskRutI sabakI eka ciraMtana KUna ragoM me hindu haiM

virATa sAgara samAja apanA hama saba isake bindu haiM ||dhRu||


rAma kRuShNa gautama kI dharatI mahAvIra kA j~jAna yahA~M

vANI KaNDana maNDana karatI SaMkara cAroM dhAma yahA~M

jitane darSana rAheM utanI cintana kA caitanya BarA

pantha KAlasA gurU putroM kI balidAnI yaha puNya dharA

akShaya vaTa agaNita SaKAeM jaDa meM jIvana hindu haiM ||1||


koTI hRudaya haiM BAva eka hai isI BUmi para janma lie

mAtRuBUmi yaha karmaBUmi yaha puNyaBUmi hita mare jiye

hAre jIte saMGarShoM meM sAtha laDhe balidAna hue

kAlacakra kI majabUrI meM riSte nAte biKara gaye

eka baDA parivAra hamArA puraKe saba ke hindu haiM ||2||


sabakI rakShA dharma karegA usakI rakShA Aja kareM

varNa Beda mata Beda miTA kara nava racanA nirmANa kareM

dharma hamArA jaga meM aBinava akShaya hai avinASI haiM

isI kaDI se juDe hue hama yuga se BAratavAsI haiM

thAha athAha jahA~M kI mahimA geharA jaisA sindhu haiM ||3||


harijana girijanavAsI bana ke nagara grAma saba sAtha caleM

UMca nIca kA BAva haTA kara samatA ke sadBAva baDheM

Upara diKate Beda Bale ho jaise vanameM meM PUla Kile

raMga biraMgI musakAnoM se jIvana rasa para eka mile

saMjIvanI rasa amRuta pIkara mRutyuMjaya hama hindu haiM ||4||

***

ಸಂಸ್ಕೃತೀ ಸಬಕೀ ಏಕ ಚಿರಂತನ ಖೂನ ರಗೋಂ ಮೇ ಹಿಂದು ಹೈಂ

ವಿರಾಟ ಸಾಗರ ಸಮಾಜ ಅಪನಾ ಹಮ ಸಬ ಇಸಕೇ ಬಿಂದು ಹೈಂ ||ಧೃ||


ರಾಮ ಕೃಷ್ಣ ಗೌತಮ ಕೀ ಧರತೀ ಮಹಾವೀರ ಕಾ ಜ್ಞಾನ ಯಹಾಂ

ವಾಣೀ ಖಂಡನ ಮಂಡನ ಕರತೀ ಶಂಕರ ಚಾರೋಂ ಧಾಮ ಯಹಾಂ

ಜಿತನೇ ದರ್ಶನ ರಾಹೇಂ ಉತನೀ ಚಿಂತನ ಕಾ ಚೈತನ್ಯ ಭರಾ

ಪನ್ಥ ಖಾಲಸಾ ಗುರೂ ಪುತ್ರೋಂ ಕೀ ಬಲಿದಾನೀ ಯಹ ಪುಣ್ಯ ಧರಾ

ಅಕ್ಷಯ ವಟ ಅಗಣಿತ ಶಖಾಏಂ ಜಡ ಮೇಂ ಜೀವನ ಹಿಂದು ಹೈಂ ||೧||


ಕೋಟೀ ಹೃದಯ ಹೈಂ ಭಾವ ಏಕ ಹೈ ಇಸೀ ಭೂಮಿ ಪರ ಜನ್ಮ ಲಿಏ

ಮಾತೃಭೂಮಿ ಯಹ ಕರ್ಮಭೂಮಿ ಯಹ ಪುಣ್ಯಭೂಮಿ ಹಿತ ಮರೇ ಜಿಯೇ

ಹಾರೇ ಜೀತೇ ಸಂಘರ್ಷೋಂ ಮೇಂ ಸಾಥ ಲಢೇ ಬಲಿದಾನ ಹುಏ

ಕಾಲಚಕ್ರ ಕೀ ಮಜಬೂರೀ ಮೇಂ ರಿಶ್ತೇ ನಾತೇ ಬಿಖರ ಗಯೇ

ಏಕ ಬಡಾ ಪರಿವಾರ ಹಮಾರಾ ಪುರಖೇ ಸಬ ಕೇ ಹಿಂದು ಹೈಂ ||೨||


ಸಬಕೀ ರಕ್ಷಾ ಧರ್ಮ ಕರೇಗಾ ಉಸಕೀ ರಕ್ಷಾ ಆಜ ಕರೇಂ

ವರ್ಣ ಭೇದ ಮತ ಭೇದ ಮಿಟಾ ಕರ ನವ ರಚನಾ ನಿರ್ಮಾಣ ಕರೇಂ

ಧರ್ಮ ಹಮಾರಾ ಜಗ ಮೇಂ ಅಭಿನವ ಅಕ್ಷಯ ಹೈ ಅವಿನಾಶೀ ಹೈಂ

ಇಸೀ ಕಡೀ ಸೇ ಜುಡೇ ಹುಏ ಹಮ ಯುಗ ಸೇ ಭಾರತವಾಸೀ ಹೈಂ

ಥಾಹ ಅಥಾಹ ಜಹಾಂ ಕೀ ಮಹಿಮಾ ಗೆಹರಾ ಜೈಸಾ ಸಿಂಧು ಹೈಂ ||೩||


ಹರಿಜನ ಗಿರಿಜನವಾಸೀ ಬನ ಕೇ ನಗರ ಗ್ರಾಮ ಸಬ ಸಾಥ ಚಲೇಂ

ಊಂಚ ನೀಚ ಕಾ ಭಾವ ಹಟಾ ಕರ ಸಮತಾ ಕೇ ಸದ್ಭಾವ ಬಢೇಂ

ಊಪರ ದಿಖತೇ ಭೇದ ಭಲೇ ಹೋ ಜೈಸೇ ವನಮೇಂ ಮೇಂ ಫೂಲ ಖಿಲೇ

ರಂಗ ಬಿರಂಗೀ ಮುಸಕಾನೋಂ ಸೇ ಜೀವನ ರಸ ಪರ ಏಕ ಮಿಲೇ

ಸಂಜೀವನೀ ರಸ ಅಮೃತ ಪೀಕರ ಮೃತ್ಯುಂಜಯ ಹಮ ಹಿಂದು ಹೈಂ ||೪||

***

संस्कृति सबकी एक चिरंतन खून रगों में हिंदू है

 विराट सागर समाज अपना हम सब इसके बिंदु हैं।


रामकृष्ण गौतम की धरती महावीर का ज्ञान यहां,

वाणी खंडन मंडन करती शंकर चारों धाम यहां।

जितने दर्शन राहे उतनी चिंतन का चैतन्य भरा 

पंथ खालसा गुरु पुत्रों की बलिदानी यह पुण्य धरा।

अक्षय वट अगणित शाखाएं जड़ में जीवन हिंदू है।


कोटि ह्रदय है भाव एक है  इसी भूमि पर जन्म लिए

मातृभूमि यह कर्मभूमि यह पूण्य भूमि हित मरे जिए

हारे जीते संघर्षों में साथ लड़े बलिदान हुए 

कालचक्र की मजबूरी में रिश्ते नाते बिखर गए

एक बड़ा परिवार हमारा पुरखे सबके हिन्दू हैं।


सबकी रक्षा धर्म करेगा इसकी रक्षा आज करें

वर्ण भेद मतभेद मिटाकर नवरचना निर्माण करें।

धर्म हमारा जग में अभिनव अक्षय है अविनाशी है

इसी कड़ी से जुड़े हुए युग युग से भारत वासी हैं

थाह अथाह जहां की महिमा गहरा जैसे सिंधु है।


हरिजन गिरिजन वासी वन के नगर ग्राम सब साध चले

ऊंच नीच का भेद मिटाकर  समता के सद्भाव भरे

ऊपर दिखते भेद भले हो जैसे वन में फूल खिले

रंग बिरंगी मुस्कानों से जीवन रस पर एक मिले

 संजीवनी रस अमृत पीकर मृत्युंजय हम हिंदू हैं।

***


No comments:

Post a Comment